सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाली लाखों छात्राओं के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए राज्य सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। एक नई शिक्षा प्रोत्साहन योजना की शुरुआत की गई है जिसके तहत गरीबी रेखा से नीचे (BPL) जीवन यापन कर रहे परिवारों की बेटियों को सीधे उनके खाते में वित्तीय सहायता (financial assistance) प्रदान की जाएगी। यह योजना उन बच्चियों पर विशेष रूप से केंद्रित है जिन्होंने अपने एक या दोनों माता-पिता (single parent/orphan) को खो दिया है।
सहायता राशि और वितरण मोड
इस योजना के तहत, छात्राओं को उनकी कक्षा के आधार पर सालाना दो श्रेणियों में आर्थिक मदद मिलेगी।
- कक्षा 1 से 8 तक की छात्राओं को प्रति वर्ष ₹2,100/- की राशि मिलेगी।
- कक्षा 9 से 12 तक की छात्राओं को प्रति वर्ष ₹2,500/- की राशि दी जाएगी।
यह राशि डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) के माध्यम से सीधे लाभार्थी के बैंक खाते में भेजी जाएगी। सुनिश्चित किया गया है कि बैंक खाता परिवार के मुखिया या बालिका के जन आधार (Jan Aadhaar) से लिंक हो ताकि पूरी प्रक्रिया पारदर्शी (transparent) और त्वरित (quick) हो।
पात्रता की शर्तें
यह योजना केवल पात्र बीपीएल परिवारों की छात्राओं के लिए है, जिन्होंने माता-पिता को खो दिया है।
- आवेदक को राज्य का मूल निवासी होना अनिवार्य है।
- छात्रा सरकारी स्कूल में कक्षा 1 से 12 में अध्ययनरत हो।
- छात्रा का परिवार गरीबी रेखा से नीचे (BPL) श्रेणी में आता हो।
- छात्रा ने एक या दोनों माता-पिता को खो दिया हो।
आवेदन प्रक्रिया को बनाया गया आसान
आवेदन की प्रक्रिया को डिजिटल (digital) और स्कूल-आधारित रखा गया है ताकि अभिभावकों को परेशानी न हो।
लाभार्थियों के माता-पिता/अभिभावक अपने संबंधित सरकारी स्कूल से संपर्क करेंगे। स्कूल अधिकारी शाला दर्पण (Shala Darpan) पोर्टल के माध्यम से डेटा एंट्री (data entry) करेंगे। स्कूल BPL और अनाथ/सिंगल पैरेंट श्रेणियों के तहत पात्र लड़कियों का चयन कर सूची को अंतिम अनुमोदन (final approval) के लिए जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) को भेजेंगे। OTP-आधारित सत्यापन के बाद राशि सीधे खाते में हस्तांतरित (transferred) कर दी जाएगी।
सफलतापूर्वक आवेदन के लिए जन आधार कार्ड, BPL सर्टिफिकेट, शैक्षणिक प्रमाण पत्र, और माता-पिता का मृत्यु प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज़ आवश्यक हैं।
सरकारी सूत्रों के अनुसार, इस योजना का उद्देश्य आर्थिक तंगी के कारण स्कूल छोड़ने (school dropout) वाली छात्राओं की संख्या को शून्य पर लाना है। यह ऐतिहासिक योजना राजस्थान राज्य सरकार द्वारा शुरू की गई है, जो बालिकाओं की शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही है।