नई दिल्ली। देश के ऑटोमोबाइल सेक्टर में जल्द ही एक बड़ा परिवर्तन आने वाला है, जिसकी शुरुआत एक वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री के महत्वपूर्ण बयान से हुई है। इस बयान के अनुसार, आने वाले महज चार से छह महीनों के भीतर इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) की कीमतें पारंपरिक पेट्रोल और डीजल कारों के बराबर हो जाएंगी। यह ऐतिहासिक प्राइस पैरिटी (Price Parity) भारत के इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन के लिए गेम चेंजर साबित होगी।
कीमत घटने के मुख्य कारण
कीमतों में यह तीव्र गिरावट मुख्य रूप से लिथियम-आयन बैटरी की लागत कम होने के कारण आ रही है। वर्तमान में, बैटरी की कीमत एक इलेक्ट्रिक वाहन की कुल लागत का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा होती है। FAME-II और PLI योजनाओं के तहत स्थानीय बैटरी विनिर्माण (Manufacturing) को मिल रहे भारी समर्थन से उत्पादन लागत में तेज़ी से कमी दर्ज की गई है।
सरकार द्वारा GST दर को घटाकर सिर्फ 5 प्रतिशत करने और EV लोन पर टैक्स छूट देने जैसे प्रोत्साहन भी कीमतों को नीचे लाने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं। इन कदमों से इलेक्ट्रिक वाहन अब आम उपभोक्ता के लिए एक व्यावहारिक और किफायती विकल्प बनते जा रहे हैं।
बाधा दूर, 30% लक्ष्य हासिल करने में मिलेगी मदद
कीमत में समानता (Price Parity) हासिल होना, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को अपनाने के रास्ते में खड़ी सबसे बड़ी आर्थिक बाधा को पूरी तरह से दूर करेगा। एक बार कीमतें बराबर होने पर, सामान्य उपभोक्ता के लिए भी EV खरीदना अधिक आकर्षक और आसान हो जाएगा।
भारतीय बाजार में पहले से ही कई सफल मॉडल्स मौजूद हैं, जिनकी परफॉर्मेंस बेहतरीन है। उदाहरण के लिए, Tata Nexon EV 465 किलोमीटर की शानदार रेंज और लगभग ₹14.5 लाख की शुरुआती कीमत के साथ एक लोकप्रिय विकल्प है। विशेषज्ञों का मानना है कि जैसे ही कीमतों में समानता आएगी, इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री में कई गुना वृद्धि हो सकती है। यह कदम देश के 30 प्रतिशत इलेक्ट्रिक वाहन पैठ के महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय लक्ष्य को वर्ष 2030 तक प्राप्त करने में महत्वपूर्ण साबित होगा, जिससे देश को आयातित तेल पर निर्भरता कम करने और पर्यावरण को बेहतर बनाने में भी मदद मिलेगी।
यह सिर्फ उपभोक्ताओं के लिए एक अच्छी खबर नहीं है, बल्कि यह देश को स्वच्छ और हरित परिवहन की दिशा में आगे बढ़ाने वाला एक ऐतिहासिक कदम भी है।